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भारत में मंदिर वास्तुकला – नागर, द्रविड़ और बेसर शैली

भारत में मंदिर वास्तुकला का उदय:

यू तो मंदिरों की शुरुआत कब हुई किसी को नहीं पता लेकिन जितना इतिहास को कुरेदने से पता चला है की मंदिर वास्तुकला निर्माण का काम मौर्य काल में शुरू हो गया था लेकिन इसको गुप्त काल में तरकी मिली जिसके बाद नागर, द्रविड़ और बेसर शैली विख्यात हुई |

अग्रेजी के “Temple” शब्द को भारत के अलग अलग जगह पर देवाल‍य, देवकुल, मंदिर, कोविल, देवल, देवस्थानम या प्रासाद भी कहते है |

शुरुआती दौर में मंदिर देवी देवता की पूजा करने और धार्मिक क्रियाओ को संपन्न करने के लिए बनाए जाते थे, जो धीरे धीरे महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक संस्थानों के रूप में बढ़ने लगे |

प्राचीन मंदिरों में स्तुपो के अलावा साथ में देवी देवताओ की मुर्तिया भी बनने लगी, हर मंदिर में एक प्रधान देव की प्रतिमा होती थी |

इसमें प्रमुख मंदिर उतर प्रदेश के देवगढ, मध्य प्रदेश और विदिशा में पाए जाते है, तिगवा का विष्णु मंदिर (जबलपुर, म.प्र.), भूमरा का शिव मंदिर (सतना, म.प्र.), नचना कुठार का पार्वती मंदिर (पन्ना, म.प्र.), देवगढ़ का दशावतार मंदिर (ललितपुर, यू.पी.), भीतरगाँव का मंदिर (कानपुर, यू.पी.) |

इस समय कई मदिर चट्टानें काटकर भी बनाए गए जैसे 5 वी शताब्दी का महाबलिपुरम का रथ-मंडप |

छठी शताब्दी के बाद से भारतीय मंदिर की वास्तुकला में काफी बदलाव आया, उतर भारतीय और दक्षिण भारतीय इलाके के मंदिर अलग अलग शैली में बनने लगे |

मंदिर बनाने की शैली जो काफी प्रचलित हुई उनमे नागर शैली, द्रविड़ शैली और बेसर शैली शामिल है |

नागर शैली

नागर शब्द नगर से बना है, क्योंकि इसका निर्माण सबसे पहले नगर में होना चालू हुआ |

नागर शैली का मुख्य काल 8 वी से 13 वी सदी के बीच रहा |

नगर शैली के मंदिर ऊँचे चबूतरे पर बने होते है, चबूतरे पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां लगी होती है |

नागर शैली में मंदिर आधार से लेकर शिखर तक चकोर या वर्गाकार होते है |

नागर शैली के मंदिर में दो भवन होते हैं – एक गर्भगृह और दूसरा मंडप | गर्भगृह ऊँचा होता है और मंडप छोटा होता है |

मंदिरों में चार कक्ष होते हैं – गर्भगृह, जगमोहन, नाट्यमंदिर और भोगमंदिर

नागर शैली का विस्तार महाराष्ट्र से लेकर बंगाल तक और विध्यांचल से लेकर हिमालय तक पाया जाता है, इसका प्रमुख केंद्र मध्यप्रदेश है |

उड़ीसा का कोणार्क सूर्य मंदिर नागर शैली का सर्वोतम उदाहरण है |

 

द्रविड़ शैली

द्रविड़ शैली दक्षिण भारत की मुख्य मंदिर वास्तुकला निर्माण शैली है |

द्रविड़ शैली का मुख्य केंद्र कृष्णा नदी से लेकर दक्षिण के कन्याकुमारी तक मिलता है |

द्रविड़ शैली का मुख्य काल 8 वी शताब्दी से लाकर 18 शताब्दी तक माना जाता है |

बेसर शैली

बेसर शैली का चलन पूर्व मध्यकाल में हुआ.

वस्तुतः यह एक मिश्रित शैली है जिसमें नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों के लक्षण पाए जाते हैं.

वेसर शैली के उदाहरणों में दक्कन भाग में कल्याणी के परवर्ती चालुक्यों द्वारा तथा होयसालों के द्वारा बनाए गए मंदिर प्रमुख हैं.

इसमें द्रविड़ शैली के अनुरूप विमान होते हैं पर ये विमान एक-दूसरे से द्रविड़ शैली की तुलना में कम दूरी पर होते हैं जिसके फलस्वरूप मंदिर की ऊँचाई कुछ कम रहती है.

वेसर शैली में बौद्ध चैत्यों के समान अर्धचंद्राकार संरचना भी देखी जाती है, जैसे – ऐहोल के दुर्गामंदिर में.

मध्य भारत और दक्कन में स्थान-स्थान पर वेसर शैली में कुछ अंतर भी पाए जाते हैं. उदाहरणस्वरूप, पापनाथ मंदिर और पट्टडकल मंदिर

 

 

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